Wednesday 7 September 2011

मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज द्वारा:

पाँच इन्द्रिय और मन को वष मे करो,संयम रूपी रत्न को संभाल कर रखो ताकि तुम्हारा जीवन सुरक्षित रह सके। उक्त विचार मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज ने आज संयम धर्म पर व्यक्त किए।
संयम का अर्थ बताते हुए मुनि श्री ने कहा कि भोग की अति और त्याग की अति से ऊपर उठ जाना मध्यम मार्ग को स्वीकार करना,न अत्यधिक विषय शक्ति हो,न पूर्ण विरक्ति हो संतुलन का नाम ही संयम है।
मुनि श्री ने कहा कि संयम के पालन के लिए हम यत्नपूर्वक चलो,यत्नपूर्वक बैठो,यत्नपूर्वक उठो,यत्नपूर्वक खाओ,यत्नपूर्वक सोओ ,यत्नपूर्वक बोलो जिससे पाप का बंधन न हो और इंसान अगर होशपूर्वक जीवन जीने लग जाता है तो उसका पचास प्रतिशत पाप अपने आप समाप्त हो जाता है।
संयम धर्म का विश्लेषण करते हुए उन्होने कहा कि सीता ने एक बार संयम रेखा का उल्लंघन करोगे तो नरक मे पहुच जाओगे । उन्होने कहा संसार मे इन्द्रिय व स्त्री दो चीज बहुत खतरनाक है एक बार कोई पुरुष स्त्री की माँग कर दी जाए तो इंद्रिया उसे सतत माँगती रहती है इसलिए संयमी को इन दोनों से बचकर रहना चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि संयम वस्तु का पूर्ण निषेध नहीं करता पर भोग और सामग्री पर कंट्रोल अवश्य करता है यह संतुलन बनाना सिखाता है जैसे सर्कस मे रस्सी पर चलता हुआ नर दोनों तरफ बराबर भर बनाए रखता है और चलता है उसी प्रकार संयमी भी चलता रहता है,आगे बढ़ता है ।
मुनि श्री ने कहा कि नर से नारायण बनने कि यात्रा का शुभारंभ संयम है क्योकि संयम रहित जीवन मुर्दे के समान है संयम रहित जीवन दीमक लगे व्रक्ष कि भाति है जो जल्द ही धराशायी हो जाता है।

Monday 5 September 2011

Ghum Un Ko Hi Naseeb Hotay Hain


Ghum Un Ko Hi Naseeb Hotay Hain
Jo Log Khush Naseeb Hotay Hain

Hota Hay Aikh Hi Koi Apna
Warna Saare Raqeeb Hotay Hain

Doulat-e-Zindagi Ke Khuwahish Hay
Log Kitnay Ghareeb Hotay Hain

Zakhm Hum Ko Jo Adda Kerte Hain
Wo Humare Hi Habeeb Hotay Hain

Hum Ko Dushman Samhaj Rahe Hain Jo
Wohi Dil Kay Kareeb Hotay Hain

Dilon Mein Dard Chupaney Waley
Khuwahishon Kay Saleeb Hotay Hain

Ishq Mein Mar Kay Bhi Fana Na Howe
Silsiley Yea Bhi Ajeeb Hotay Hain...!!! 

Ibadat...........

.....जो नज़र नहीं आता,
.....वो मेरा मरहम है तू
..... तुझे तलाशूँ क्यों कर,
....मुझमें तो बसा है तू
....तूने अर्ज़ी ना पढ़ी हो ये हो नहीं सकता
… मेरी दवात की स्याही की रोशनाई है तू
....अपने खादिम पे कर नियामतों की बारिश
… है खज़ाने में तेरे सब, ऐसा मालिक है तू
...बना डाले ये चाँद सितारे ये आलम तूने
... मेरी भटकी हुई रूह का घरोंदा है तू
...तेरे करम को तलाशें, ना कोई ढूंढे तुझे
… .है राधा का किशन जो, मेरा वो इश्क है तू
....तेरे आलम का हूँ फकीर, ना हूँ पीर कोई
....इबादत मैं करूँ किसकी मेरा गुरूर है तू....