Monday 5 September 2011

Ibadat...........

.....जो नज़र नहीं आता,
.....वो मेरा मरहम है तू
..... तुझे तलाशूँ क्यों कर,
....मुझमें तो बसा है तू
....तूने अर्ज़ी ना पढ़ी हो ये हो नहीं सकता
… मेरी दवात की स्याही की रोशनाई है तू
....अपने खादिम पे कर नियामतों की बारिश
… है खज़ाने में तेरे सब, ऐसा मालिक है तू
...बना डाले ये चाँद सितारे ये आलम तूने
... मेरी भटकी हुई रूह का घरोंदा है तू
...तेरे करम को तलाशें, ना कोई ढूंढे तुझे
… .है राधा का किशन जो, मेरा वो इश्क है तू
....तेरे आलम का हूँ फकीर, ना हूँ पीर कोई
....इबादत मैं करूँ किसकी मेरा गुरूर है तू....

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